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वाचन के अर्थ उद्देश्य एवं साधन

वाचन का अर्थ उद्देश्य एवं साधन
वाचन का अर्थ एवं महत्व


वाचन एक कला है जिसे बालक अपने प्रयास से ही सीखता है। शिक्षक का दायित्व केवल प्रेरणा प्रदान करना है। यह उत्सुकता तभी होगी जब बालक को उसकी जानी पहचानी चीजों के विषय में पढ़ाया जाए एवं बालक की अभिरुचि को सजग किया जाए।

कैपरीन ओकानर के अनुसार- वाचन वह जटिल अधिगम प्रक्रिया है जिसमें दृश्य श्रव्य एवं गति ग्राही सर कीटों का मस्तिष्क के अधिगम केंद्र से संबंध निहित है।
डोनल मायल के अनुसार- लिखने में मौखिक भाषा को स्थाई रूप प्रदान किया जाता है और वाचन में इनका उल्टा किया जाता है।
 
वाचन का महत्व -
क्या यह जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में वाचन की आवश्यकता होती है। वस्तुतः वाचन एक कला है जिसकी आवश्यकता ऊंच-नीच गरीब अमीर सभी को पड़ती है। वाचन की शुद्धता एवं उसकी सहायता से वार्तालाप संभाषण आदि का धन आता है जिसके परिणाम स्वरुप व्यक्ति समाज देश और जाति के अच्छे योग्य नागरिक हो सकते हैं तथा अशिक्षित भाइयों को विला पहुंचा सकते हैं। अतः वाचन की योग्यता रखना इस प्रगतिशील विश्व में अत्यंत आवश्यक है। इसके विपरीत वाचन की योग्यता ना रखने से व्यक्ति संसार की सांस्कृतिक महानता में अपना अस्तित्व आनंद नहीं ले सकता है ।

वाचन के उद्देश्य
बालकों को वाचन का प्रयोग तथा अभ्यास प्रारंभ से ही करा देना चाहिए क्योंकि बाल्यावस्था में एक बार आदत पड़ जाने पर वह शीघ्र नहीं छूटती है तथा बालक उसके अभ्यस्त हो जाते हैं। 

अतः वाचन शिक्षण के समय निम्नलिखित वाचन के उद्देश्यों पर ध्यान रखना चाहिए-
  1. बालक को शब्द ध्वनियों का उचित ज्ञान कराया जाए तभी हुए मुंह के उचित स्थान से ध्वनि निकालेंगे।
  2. छात्रों को शुद्ध उच्चारण का अभ्यास कराएं।
  3. स्वर्ग के उचित उतार-चढ़ाव का ज्ञान कराएं।
  4. विराम अर्धविराम आदि चिन्हों का ज्ञान कराएं।
  5. वाचन मुद्रा का उचित प्रयोग कराएं।
  6. शुद्ध उच्चारण हेतु अक्षर बोध प्रणाली का प्रयोग करें।
  7. शिक्षक द्वारा छात्रों से अपने वचन का अनुकरण कराया जाए। ध्वनि में समानता रखने वाले शब्दों को एक साथ सिखाया जाए।
  8. वाक्य शिक्षण प्रणाली का प्रयोग किया जाए।

वाचन शिक्षण की विधियां
शिक्षा जगत में वाचन शिक्षण की विधियां निम्नलिखित हैं -

1. संगीत विधि- इस विधि का सर्वप्रथम प्रयोग मैडम मांटेसरी ने किया था। इसके अंतर्गत बहुत सी वस्तुओं चित्रों खिलौनों आदि के आगे उनके नाम एवं कार्ड पर लिखकर रख दिए जाते हैं। पुनः यह कार्ड फेंक दिया जाता है और बालकों से यह कहा जाता है कि जिस वस्तु के जो नाम हैं उसी के सामने फेंके गए कार्ड को रखें। शिक्षा में इस विधि को नहीं के बराबर सम्मिलित किया जाता है।

2. देखो और कहो-
इस विधि के अंतर्गत अध्यापक एक पूरा शब्द श्यामपट्ट पर लिख देता है तत्पश्चात बालकों में अक्षर की पहचान कराई जाती है। इस विधि में एक बड़ा दोष शब्दों की पहचान में हो जाता है अर्थात धर्म धर्म का कर्म पढ़ा जा सकता है अतः यह विधि त्याज्य है।

3. अक्षर बोध विधि- इस विधि में अध्यापक बालक को क्रमानुसार वर्णमाला अक्षरों की पहचान करा देता है तत्पश्चात बालक को शब्द दे दिया जाता है जैसे ख ट म ल अक्षरों से मिलकर खटमल शब्द।

4. समवेत पाठ विधि-
इस विधि में अध्यापक बालकों को छोटे पद तथा गीत सिखाते हैं। इसमें अध्यापक एक पाठ को भावपूर्ण रीति से पड़ता है तथा सभी बालक एक साथ उसकी आवृत्ति करते हैं। यह विधि लाभकारी है।

5. भाषा शिक्षण की यंत्र विधि-
इस विधि के अंतर्गत अध्यापक एक यंत्र का प्रयोग करता है जिसका नाम ग्रामोफोन है। अध्यापक एक पाठ को ग्रामोफोन के एक तवे में भर देते हैं जिसे सुनकर बालक उसका अनुसरण करते हैं। यह विधि अधिक खर्चीली व दुर्लभ है अतः यह त्याज्य है।

6. ध्वनि साम्य विधि-
इस विधि के अंतर्गत एक समान उच्चारित होने वाले शब्द बालक को एक साथ ही सिखाए जाते हैं जैसे श्रम भ्रम भ्रम आदि।

7. अनु ध्वनि विधि-
इस विधि के अंतर्गत बालकों को एक समान उच्चारित होने वाले शब्द एक साथ सिखाए जाते हैं अर्थात लिखा हुआ कुछ जाए पड़ा कुछ जाए जैसे अंग्रेजी भाषा में पुट कट बट आदि।


सस्वर वाचन का तात्पर्य
सस्वर वाचन की परिभाषा देते हुए एक विद्वान लेखक ने लिखा है लिखित भाषा के धनात्मक पाठ को सस्वर वाचन कहते हैं।

सस्वर वाचन का महत्व- सस्वर वाचन का निम्नलिखित महत्व है-
1. सस्वर वाचन से छात्रों की झिझक दूर होती है। छात्रों में निडरता आती हैआत्मविश्वास का गुण फायदा होता है शुद्ध उच्चारण का अभ्यास होता है।
2. छात्रों का संकोच और झिझक दूर होती है जो उनके सर्वांगीण विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है।
3. लेखकों की अनुपस्थिति में अपने विचारों से दूसरों को अवगत कराने के लिए सस्वर वाचन की आवश्यकता होती है।
4. सस्वर वाचन के विधिवत अभ्यास द्वारा छात्रों को सफल वक्ता बनाया जा सकता है।

सस्वर वाचन के उद्देश्य- सस्वर वाचन के निम्नलिखित उद्देश्य हैं-
1. पढ़ते समय स्वरों के उतार चढाव तथा विराम आदि का ध्यान रखना चाहिए। 
2 . पढ़े हुए विषय को छात्र दूसरों को भी समझा सके,इतनी क्षमता उत्पन्न करना
3. छात्रों में ऐसी क्षमता पैदा करना कि वे पाठ का वाचन इस प्रकार से कर सकें कि सुनने वाला सरलता से समझ सके।

स्वर वाचन के अंग - स्वर वाचन के प्रमुख अंग निम्नलिखित हैं -
1. विराम चिन्हों का प्रयोग-
पढ़ते समय छात्र का ध्यान इस ओर आकर्षित किया जाए कि वह विराम अर्धविराम आज चिन्हों का ध्यान रखकर पढ़ सकें
2. उचित बल- छात्र को प्रत्येक शब्द के उचित बल से भी अवगत कराया जाए।
3. शुद्ध उच्चारण- छात्र को शुद्ध उच्चारण का इतना अभ्यास करा दिया जाए कि वह गत एवं पद का उतार-चढ़ाव के साथ प्रत्येक शब्द का उच्चारण कर सकें।
4. ध्वनि का उचित ज्ञान-
छात्र को शब्द शक्तियों का उचित ज्ञान कराना तभी हुए मुंह के उचित स्थान से ध्वनि निकालेंगे।
5. विशेष बल-
विदुषी लेखिका के क्षत्रिय ने वाचन में अध्यापक के लिए भी विशेष बात ध्यान में रखने की सलाह दी है उन्हीं के शब्दों में- पुस्तक को बाएं हाथ में आंखों से 12 इंच की दूरी पर 45 अंश का कोण बनाते हुए पकड़ कर पढ़ना उपयुक्त होगा। पढ़ने वाले का मुख्य श्रोताओं को अवश्य दिखाई देता रहे। जहां तक संभव हो पाठ कभी भी बैठ कर ना पढ़ा जाए। कक्षा के समक्ष खड़े होकर पढ़ना ही उत्तम रहेगा।
6. प्रसंग अनुसार उतार- चढ़ाव- प्रसंग के अनुसार अर्थात श्रोताओं की अवस्था के अनुसार हम श्वर का ध्यान रखना चाहिए जिससे वाक्य के प्राण को सजीव बनाया जा सके।
7. सरसता एवं मधुरता -
छात्रों को धैर्य पूर्वक वाणी में सरसता एवं मधुरता संजोए हुए पाठन के लिए प्रेरित किया जाए।
8. वाचन मुद्रा-
वाचन में मुद्रा का अभी अपना स्थान होता है। उदाहरण के लिए यदि आप वीर रस की कविता पढ़ रहे हैं तो मुख मुर्दा तेज पूर्ण होनी चाहिए और श्रृंगार या करुण रस में मुख मुद्रा क्रमशः पूर्ण एवं हीन हो जाती है।
9. रुचि- वाचन के प्रति छात्रों में रुचि जागृत की जाए।


स्वर वाचन के प्रकार - सस्वर वाचन के प्रमुख रूप से दो भेद किये गए हैं -
  1. व्यक्तिगत वाचन
  2. सामूहिक वाचन
1. व्यक्तिगत वाचन-
व्यक्तिगत वाचन कक्षा में अध्यापक के आदर्श पाठ करने के पश्चात किया जाता है। आदर्श पाठ करने के बाद एक छात्र अध्यापक के वचन का अनुसरण करता है। विशेष बात यह है कि अनुकरण के समय छात्र की समस्त प्रकार की अशुद्धियों की ओर ध्यान देना चाहिए किंतु बीच में रोकना एकदम गलत है। पाठ के बाद ही छात्र को उसकी त्रुटियों से अवगत कराया जाए।

2. सामूहिक वाचन-
सामूहिक वचन को समवेत वाचन भी कहा जाता है जिसका अर्थ है मिलकर या एक साथ पढ़ना। इसका विशेष लाभ कक्षा में दुर्बल या संकोची छात्रों को मिलता है। जो छात्र संकोच या भय के कारण कक्षा के समक्ष वाचन में असमर्थ होते हैं उन्हें समस्त कक्षा के साथ उच्चारण करने का अवसर मिल जाता है जिससे वह निडर होकर पढ़ने लगते हैं।
कुछ अन्य विद्वानों ने सस्वर वाचन के निम्नलिखित भेद किए हैं
1. आदर्श वाचन
2. गद्य वचन
3. कविता वाचन


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